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Tuesday, December 10, 2013

श्री राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन महाराज

  श्री राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन महाराज





 त्रेतायुग मेंमहिष्मती केसंस्थापक चन्द्रवंशी सम्राट महिष्मान की चौथी पीढ़ी मेंकृतवीर्य हुए थे, उनके पुत्र का नाम अर्जुन था। हैहयवंश की दसवीं पीढ़ी में कर्त्तवीर्याजुन नामक सम्राट हुए थे।

भगवान दत्तात्रेय के वरदान से कर्त्तवीर्याजुन को युद्द भूमि में सहस्त्रार्जुन के नाम से भी जाना जाता है। रामायण,महाभारत,वायुपुराण ,मत्स्यपुराण ,देवीभागवत ,आदि पौराणिक ग्रंथों में उनके विषय में उत्कृष्ट उल्लेख पाये जाते हैं। भारत में सात चक्रवर्ती राजा हुए जिनमें सहस्त्रार्जुन एक थे। वह एक महान राजा थे |

उन्होंने एक हजार अश्वमेघ् यज्ञ किये थे। उनकी यज्ञ वेदियां ठोस सोने की बनाई जाती थी जिन्हें वे आचार्य व ब्राम्हणों को भेंट कर देते थे। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र ने हैहयवंशीय कर्त्तवीर्याजुन के रूप में जन्म लिया। भविष्य पुराण के अनुसार महाराज कार्त्तवीर्य ने इस पृथ्वी पर पचासी हजार वर्ष तक अखंड शासन किया। महाराज सहस्त्रबाहु कृतिम वर्षा के प्रथम जनक ( आविष्कारकर्ता) थे।

अतः ' प्रत्यक्ष परजन्य ' कहलाते हैं। इन्होंने लंकापति रावण को कैद करके अपनी घुड़साल में बाँध दिया था।  जानऊ में तुम्हार प्रभुताई , सहस्त्रबाहु सन परी लराई ।

 समर बलि सन करि जस पावा ,सुनि कपि वचन विहसि विहरावा।

 रावण को सहस्त्रबाहु जी ने महेश्वर में सहज ही बंदी बना लिया था। रावण के नाना जी ने सहस्त्रबाहु जी से प्रार्थना करके रावण को छुड़ाया था। रावण ने सहस्त्रबाहु के शासनकाल में उनके क्षेत्र में देवी भागवत पुराण के अनुसार एक बार लीलामय भगवन विष्णु ने लक्ष्मी जी को भू लोक में अश्वयोनि में जन्म लेने का शाप दे दिया।लक्ष्मी जी को इससे बहुत क्लेश हुआ ,उनकी प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने कहा - देवी यधपि मेरा वचन अन्यथा नहीं हो सकता तथापि कुछ काल तक अश्वयोनि में रहोगी। लक्ष्मी जी ने भूलोक में अश्वयोनि में जन्म लिया फिर एक हजार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करने पर उनके आशीर्वाद से भगवान विष्णु ने अश्व का रूप धारण किया जिससे कालांतर में देवी लक्ष्मी को एकवीर नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ ,उसी से हैहयवंश की उत्पत्ति हुई। शाप से मुक्त होकर पति के साथ बैकुण्ठ जाते वक्त शिशु को नदीतट के जंगल में छोड़ गईं ,जिसे ययाति के पुत्र तुर्वस ने पाला ,बच्चे का एकवीर ''हैहय '' नामकरण हुआ  एकवीर -एकावली से धर्मनेत्र, धर्मनेत्र -विन्दावती से पुत्र कुन्तिदेव , कुन्तीदेव -विध्यावती के पुत्र सोहति , सोहति -रानी चम्पावती से महिष्मान पुत्र हुआ , महिष्मान -सुभद्रादेवी के पुत्र भद्रदेव , भद्रदेव -दिव्या के पुत्र दुभद्र , दुभद्र -ज्योतिषमति के पुत्र धनद , धनद -राखीदेवी से कृतवीर्य नाम का पुत्र हुआ। कृतवीर्य की पत्नी का नाम कौशली था उनसे चक्रवर्ती राजा राजराजेश्वर सम्पूर्ण पृथ्वी को जीतने वाले कार्तवीर्यार्जुन श्री सहस्त्रबाहु का जन्म कार्तिक शुक्ल सप्तमी सोमवार को हुआ।

 कार्तवीर्यार्जुन भगवान दत्तात्रेय के अनन्य भक्त थे। जब भगवान दत्तात्रेय इन पर प्रशन्न हुए तो इन्होंने उनसे चार वरदान मांगे। प्रथम वर के रूप में अपने लिये एक हजार भुजाएं माँगी । दूसरे वर के रूप में सत्पुरूषों के साथ अधर्म करने वालों के निवारण का अधिकार माँगा।

तीसरे वरदान के रूप में युध्द द्वारा सारी पृथ्वी को जीतकर धर्मानुसार प्रजापालन की क्षमता माँगी और चौथा वरदान यह माँगा कि रणभूमि में मझसे अधिक बलवान के हाथों मेरा बध हो। (मत्स्य जन्म के समय उनके केवल दो हाथ ही थे किन्तु उक्त वरदान के फलस्वरूप

युद्धस्थल में उनके एक सहस्त्रहाथ प्रगट हो जाते थे। वे इतने हाथों का भार भी महसूस नहीं करते थे। शक्ति संपन्न होने पर भी उन्होंने सातों समुद्रों से घिरी हुई पर्वतों सहित सातों दीपों की समग्र पृथ्वी को जीतकर चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि प्राप्त की थी।


- सुधा ताम्रकार



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