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Sunday, December 8, 2013

सहस्त्रबाहु जी की आरती

सहस्त्रबाहु जी की  आरती 

|| जय सहस्त्रबाहु देवा,  श्री गणेशाय नमः || 



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जय सहस्त्रबाहु देवा ,

जय सहस्त्रबाहु देवा-जय सहस्त्रबाहु देवा ,

माता जाकी पधिनी -पिता कार्तवीर्या ,

स्मरण को भोग लगे -हैहयवंशीय करें सेवा , 

जय सहस्त्रबाहु देवा ।

 पिता संग माता ने तपस्या में साथ निभाया ,

विष्णु जी से श्रेस्ठ वीर पुत्र का वरदान पाया,

बड़े होने पर पिता ने राजमुकुट पहनाने का विचार बनाया , 

जय सहस्त्रबाहु देवा । 

महर्षि गर्ग से पायी प्रेरणा -दत्तात्रेय की सेवा ,

चार वरदानों का फल पाया -सहस्त्रवाहों का बल पाया ,

धर्म पूर्वक प्रजा पालन एवं रक्षा का सूत्र हाथ आया ,

रण भूमि में जग के श्रेष्ठ यौद्धा से मरने का विश्वास आया , 

जय सहस्त्रबाहु देवा। 

अपना राज्य सात समंदर तक फैलाया ,

जन जन की रक्षा का वचन निभाया ,

रावण को अपनी भुजाओं में बन्दी बनाया ,

सुन्दर कांड में वीर हनुमान से प्रशंसा पाया , 

जय सहस्त्रबाहु देवा। 

एक हजार यज्ञ प्रतिदिन सोनेकी वेदी मेंकरवाया,

धर्म और कर्म मेंजग मेंनाम कमाया,

प्रातः नाम स्मरण करने पर जन जन को ,

युगों से मन वांछित फल दिलवाया,

स्वयं ने जग में राजराजेश्वर का पद पाया , 

जय सहस्त्रबाहु देवा।

''राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन '' की महिमा को देवों ने भी वेदों में गया ,

महेश्वर में पूज्य स्थल बनवाया,

शिवलिंग में तुमको बसाया ,

अग्निदेव ने ''अखण्ड ज्योति ''के रूप में साथ निभाया ,

नर्मदा ने सहस्त्रधारा के संग अपना विशाल रूप दिखलाया ,

जन जन ने महेश्वर को को तीर्थस्थल के रूप में अपनाया , 

जय सहस्त्रबाहु देवा।


- सुधा ताम्रकार, जबलपुर  


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