सहस्त्रबाहु जी की आरती
|| जय सहस्त्रबाहु देवा, श्री गणेशाय नमः ||
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जय सहस्त्रबाहु देवा ,
जय सहस्त्रबाहु देवा-जय सहस्त्रबाहु देवा ,
माता जाकी पधिनी -पिता कार्तवीर्या ,
स्मरण को भोग लगे -हैहयवंशीय करें सेवा ,
जय सहस्त्रबाहु देवा ।
पिता संग माता ने तपस्या में साथ निभाया ,
विष्णु जी से श्रेस्ठ वीर पुत्र का वरदान पाया,
बड़े होने पर पिता ने राजमुकुट पहनाने का विचार बनाया ,
जय सहस्त्रबाहु देवा ।
महर्षि गर्ग से पायी प्रेरणा -दत्तात्रेय की सेवा ,
चार वरदानों का फल पाया -सहस्त्रवाहों का बल पाया ,
धर्म पूर्वक प्रजा पालन एवं रक्षा का सूत्र हाथ आया ,
रण भूमि में जग के श्रेष्ठ यौद्धा से मरने का विश्वास आया ,
जय सहस्त्रबाहु देवा।
अपना राज्य सात समंदर तक फैलाया ,
जन जन की रक्षा का वचन निभाया ,
रावण को अपनी भुजाओं में बन्दी बनाया ,
सुन्दर कांड में वीर हनुमान से प्रशंसा पाया ,
जय सहस्त्रबाहु देवा।
एक हजार यज्ञ प्रतिदिन सोनेकी वेदी मेंकरवाया,
धर्म और कर्म मेंजग मेंनाम कमाया,
प्रातः नाम स्मरण करने पर जन जन को ,
युगों से मन वांछित फल दिलवाया,
स्वयं ने जग में राजराजेश्वर का पद पाया ,
जय सहस्त्रबाहु देवा।
''राजराजेश्वर सहस्त्रार्जुन '' की महिमा को देवों ने भी वेदों में गया ,
महेश्वर में पूज्य स्थल बनवाया,
शिवलिंग में तुमको बसाया ,
अग्निदेव ने ''अखण्ड ज्योति ''के रूप में साथ निभाया ,
नर्मदा ने सहस्त्रधारा के संग अपना विशाल रूप दिखलाया ,
जन जन ने महेश्वर को को तीर्थस्थल के रूप में अपनाया ,
जय सहस्त्रबाहु देवा।
- सुधा ताम्रकार, जबलपुर
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