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Saturday, July 17, 2010

इस ब्लॉग का प्राथमिक उद्देश्य

इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य नवयुवको को अपने पूर्वज महाराज सहस्त्रबाहु जी से परिचित करना है |

महाराज सहस्त्रबाहु का नाम हमारे नाम से जुड़ा हुआ है क्यूंकि हम हैहयवंशी क्षत्रिय ताम्रकार हैं | जैसा कि नाम कहता है, सहस्त्रबहु महाराज कि सहस्त्र भुजाएं हैं, जो कि भगवन दत्तात्रेय द्वारा उनकी गहरी भागती से प्रसन्न होके वरदान में दी गयी थी |

महाराज ने अपना सारा जीवन गरीबो और कमज़ोर वर्ग क लोगो की रक्षा अधर्मियो और सामाजिक बहसकर्ताओ से करने में लगायी |

सहस्त्र का शाब्दिक अर्थ तो सेंकडो होता है पर हमारे लिए यह महाराज साजस्त्रार्जुन की भुरइयो पे जीत को दर्शाता है |

पौराणिक काल में देवताओ कि शक्तियो का सचित्र वर्णन उनके सेंकडो हाथो से एवं उनकी मस्तिक्ष कि शक्तियो को सेंकडो सर से दर्शाया जाता था |

दंतकथाओं एवं पौराणिक कथाओ के आधार पर महाराज सहस्त्रबाहु कि शक्तियो कि अभिव्यक्ति कि जा सकती है और यही इस लेख का मुख्य उद्देश्य है |

इस पाठ चरित्र का उद्देश्य मुख्यतः हमारे समाज के उन युवाओ को परिचित करना है जो कि सामाजिक कार्यो से अनभिज्ञ हैं |

शायद इस लेख को समझने क लिए उन्हें अपने बड़ो क मार्गदर्शन कि ज़रूरत पड़ सकती है पर उम्मीद है हमारे अतीत का गौरव उनमे हमारे बारे में और ज़यादा जानने कि उत्सुकता को पैदा करेगा |

श्री काले (जो कि गदग से थे) द्वारा बनाये चित्र में भगवन सहस्त्रबहू के दस जोड़े हात दर्शाये गए हैं जो कि भगवन के हज़ारो हस्तो को दर्शाता है | वह भगवत पुराण में दरहसाये गए भगवन सहस्त्रबाहु के युध्य मोर्चे से प्रेरित था |

हमारे कुल के देवता महाराजा सहस्त्रार्जुन ने महेश्वर क्षेत्र के महिस्मति नाम के स्थान पे राज्य किया जो कि मद्य प्रदेश में स्थित है | वे प्रख्यात क्षत्रिय योध्या थे जो कि पुराण में विभिन्न बहादुर नायको के साथ गिने जाते हैं |

सहस्त्रार्जुन जी कि कहानियो को पुराणो में अलग अलग ढंग से दर्शाया गया है | कही लोग कथाओ और दंतकथाओं में उनकी महानता का इस तरह वर्णन किया है जो कि इतिहास में अमर है | 

यहाँ वर्णित दंतकथाएं लेखक द्वारा ताम्रकार समाज क कुछ नेताओ क साथ व्यक्तिगत साक्षात्कार द्वारा एकत्र किया गया है |

हमारी कहानी कि शुरुवात स्वर्ग वासी भगवन विष्णु से शुरू होती है जिनके चक्र से बुराइयों का अंत होता है | यह चक्र भगवन विष्णु से दाहिने हाथ कि तर्जनी ऊँगली में स्थित है | फोटोज में इसे शक्तिशाली नुकीले चक्र के रूप में दर्शाया गया है जो कि बहुत तीव्र गति से घूमता है | यह हथियार मानवता कइ बुरे ततवो का नाश करने वाले भगवन चक्रदेव का प्रतिनिधित्व करता है | कभी कभी यह चक्र हमारे सहस्त्रार्जुन विरासत का प्रतीक भी माना जाता है | हमारी सामाजिक किताबो क टाइटल पन्नो में इस चक्र का उपयोग किया जाता है |

8 comments:

  1. jai Sahasrarjun bagwan ki .......... The one of the branches of kalar community is Zaria kalar branch... They are mostly residents of Balaghat dist of MP and Bhandara, Gondia and Nagpur Dist of Maharastra. They do have unique dialect which is the combination of Marath, Hindi, Rajasthani, Chhattisgarhi and Bhojpur. The various surnames are as follows
    Borikar, Sonbhadre, Bajanghate, Kekate, Baghmar(Waghmare), Sonwane, Sonekar, Sarvey, Sonbarase, Hirwane, Bagresh, Malghate,etc.

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  2. piyush ji.. you have done a great job... but many facts also need to bring in light.. such as what happen after the battel..

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  3. i have few more facts... if u need u can contact to me....my email i.d is shashwatyogi123@rediffmail.com

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  4. Hi Shashwant,

    I appreciate your query and it was pleasure watching your comment.
    I would be glad to add your contents. In fact i would be happy to provide you privilege to add contents to the blog. Let me know if you are interested.

    Thanks,
    Piyush Tamrakar

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  5. Nice information about ancestor Sahasrarjun love it to read Thanks for sharing.
    Regards
    Rakesh Kasera

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