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Monday, July 19, 2010

श्री सहअस्त्रार्जुन का जीवन चरित्र

श्री कर्ट्वीरया चक्रदेव सहअस्त्रार्जुन शहस्त्रबाहु ईश्वर क चोबीस अवतारो मे से एक सुदर्शन चक्रवातार है. इनका जन्म कार्तिक शुक्ला एकादशी क्रातिका नक्षटरा सोमवार को माता पद्‍मिनी(सर्मा) क उदार से हुआ. सुकृति, पुन्यगंधा, मनोरमा, यमघटा, बसुमति, विष्टभाद्रा, और मृगा आदि इनकी रानियाँ थी. यह बड़े शक्तिशाली योगी, प्रतापी, मेघावी, और दानवीर थे. इनमे एक सहअस्त्रा भुजाओ का बाल था, इसलिए सहअस्त्राबाहु कहलाते थे.
               महाराज सहअस्त्राबाहु ने भगवान दत्तत्रेया जी को अपना गुरु बनाया और उनसे आस्त्रा-शष्तरा संचालन आदि सभी विडयाएं सीखी. सातों द्वीप जीतकर सप्त्दीपेश्वर की उपाधि धारण की. सातों दीपों मे विषिवात सात सौ (700) यगया किए.विजय क उपलक्षा मे विजय स्तंभ स्टफिट करवाए और महतवफनो पूर्ण स्थानो पर मंदिर बनवाए जो अब तक सास-बहू(सहअस्त्रा-बाहू का आपब्रांश) क नाम से विद्यमान है. महाराज सहअस्त्राबाहु कृतिम वर्षा क प्रेताम अविष्कर्ता समझे जाते हैं. इसलिए यह प्रत्यक्षा परजनया कहलाते हैं.
सहअस्त्राबाहु महान शक्तिशाली शशक थे. एक बार अपने परिवार सहित नर्मदा नदी मे जल-क्रीड़ा कर रहे थे. कुछ रुकावट क कारण नदी का प्रताप उल्टा बहने लगा. उधर लंका की और लंका पति रवाँ शिवा पूजन मे टल्लीन था. उल्टे प्रवाह क कारण रवाँ का डेरा बह गया. तब वीरता क अभिमानी रवाँ ने क्रोध करके महाराजा सहअस्त्राबाहु पर चढ़ाई कर दी. खूब भयंकर युधहा हुआ. सहअस्त्राबाहु ने रवाँ को बंदर की तरह बंदी बना लिया. अंत मे रवाँ क पितामह मेहेरिशी पुल्सातया क अनुरोधा पे बंधन मुक्ता किया.
               मेहेरिशी जन्मदग्नि महाराज महाराज सहअस्त्राबाहु क सगे सादु थे. यधयापि जमदग्नि ब्राह्मण पुत्रा थे, किंतु इनकी माता सरस्वती और पत्नी रेणुका दोनो ही क्षत्रिया कन्याएं थी. फलतः जन्मदग्नि पुत्रा परशुराम जी मे क्षत्रियोचितता गुन्नो की प्रधानता थी.
               परशुराम- सहअस्त्राबाहु युधहा परेचीन चार महाभर्तों देवासुर संग्राम, परशुराम-शहस्त्राबाहु युधहा, राम-रवाँ युधहा, और कौरव पांडव युधहा मे एक विशेष स्थान रखते हैं.
               कारटीवीर्या सहअस्त्राबाहु की प्रार्थना पूजा पाठ भारत मे उसी भारंटि होती आई है जिस प्रकार आदि शिव, विष्णु, गणेश आदि देवताओं की पूजा भारत मे प्रचलित है. कहा जाता है की भगवान शायस्त्राबाहु बड़े कठिन कराल हैनजिसका सीधहा करना कोई सरल कारया नही है. इनको सीधहा करने क लिए सर्वा प्रथम आलस्या-उनमान्ड का परित्याग कर आचार विहार से संयुक्ता शुधता पूर्ण रहकर नित्या नियम, सत्या भसन आठवा, ब्रम्हचार आदि व्रत का पालन करना अनिवेरया है.इनके जाप अवाम सीधहा कर लेने से हिंसक पशु आठवा चूर, दुष्ता मनुशो आठवा से भाया हुमेशा जाता रहता है. उकता देवता तस्कर आठवा अराष्ट्रिया लोगो क लिए महाकाल है. यह अपने समाज मे एक मात्रा पुरुष आठवा युग पुसुश थे. प्रजा क सच साधन, क्रशको की उपज बढ़ने क निमितता अपने अर्जुनेया संभव बहुदा नदी का निर्माण किया था जो की आज भी सहअस्त्रवाँ नदी क नाम से उत्तर प्रदेश बदायू जिला मे विद्यमान है.

सतीश कुमार वेर्मा

1 comment:

  1. i appreciate this post but.......plz correct all the typing mistakes

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