हाहैइवंशी तमारी कब और कैसे कहलाए गये.?
हाहैइवंशी कल्चुरी कब और कैसे कहे गये.?
हाहइयांड संभवतः कब से चालू हुआ.?
उडयढ़वज कौन थे, इनका नाम क्यू और कैसे पड़ा.?
चीति अमावस्या-सूर्यांदूसंगम पर्व क्यू मनाया जाता है और तमारी का इससे क्या समबहधा है.?
रतनपुर क बैराग वन मे “बैराग” नमक तालाब है.जो हाहैइवंशी आध्यात्मिक राजा प्रजा अवाम शशण क दूहे से परिचित करा रहा है. पुराण अवाम इतिहास मे हाहैइवंशी आभा की अमरता का प्रमाद है. दक्षिण कौशल क कद कद मे हाहैइवंशा की आभा फैली हुई है. धरती क गर्भा मे हाहैइवंशा है. ताम्रपत्रो, ताम्रलेखो, शिलालेखों, कष्ता लेखों, महल, नगर, तालाब, बगीचा, जान जान क जीवन अवाम कर्मा मे, हाहैइवंशा की पहचान विद्यमान है. भले ही लोग इसे ना पहचान पायें हो. समाया क चरका क साथ पौराणिक अवाम ऐयतासिक प्रशत भूमि क कर्मा मे ज्योतीपूज़्जा दीप्ति-विशेषण गढ़ा है.इसी तरह विशेषाग्यॉ की आभा ने पर्याया से करता को विशेषांडालंकार से अलंकृत किया.
प्रत्येक युग मे घटनायें गहती. ईनी घटनाओ मे से एक अद्भुत घटना क फल स्वरूप हाहैइवंशा का आरवभाव हुआ. लक्ष्मी नारायण क एक और वंशा हाहैइवंशा का उदय हुआ. सतयुग से लेकर कलयुग संभवतः 1798 विक्रमी(सन 1741 ए) तक की अपनी पौराणिक अवाम अतिहासिक पहचान है.

हम युग क संधिकाल के आस्तोदया क्षितिज मे प्रलया आदि घटना घटती है.यही घटना विश्वा को नाव विहान, नाव जीवन, नाव चेतना, नाव स्फूर्ति और नाव प्रकराती देती है. द्वापर क अंतिम चरम मे भी यही हुआ. महिष्मति क हाहैइवंशी क्षत्रिया महाराज कोदपसें अवाम महारानी बालीकमति क प्रतापी पुत्रा सुधुंमण सेन थे. सुधुंमण सेन से महारानी कृिपवती क टीन महान धर्मात्मा अवाम महान प्रतापी पुत्रा उत्पन्न हुए. प्रथम नील्ध्वज, जिनकी महारानी मदन मंजरी, द्वितीया हंसध्वज जिनकी महारानी मलतिगंधा, और तृतीया मयुर्ध्वज जिनकी महारानी कुमुद देवी थी. महकौशल क महाराज सुधुंमण सेन ने अपने राज्या को तीनो पुत्रा मे बात दिया. प्रथम पुत्रा नील ध्वज को महिष्मति क सिहंसन मे बैठाए, द्वितीया पुत्रा हंसध्वज को चंद्रपुर(चंदा) क सिहंसन पर और तृतीया पुत्रा मयुर्ध्वज को रटानपुर क सिहंसन पर बिता कर राजतिलक किए और स्वयं दोनो तपस्या को चले गये. वियर सम्राट महान धर्मात्मा महाराज मयुर्ध्वज अपनी कठिन परीक्षा मे उत्तीर्ण हुए. भगवान कृष्णा की कृपा वा प्रेरणा से अर्जुन का भक्ति मद, बाल्माड मर्दन मयुर्ध्वज क कारण हुआ.
महाराज मयुर्ध्वज क समान प्रतापी इनका पुत्रा तामरदवज भी हुआ. महाराज मयुर्ध्वज और महारानी कुमुद देवी ने अपने पुत्रा तामरदवज का विवाहोपरांत राजतिलक कर वानप्रष्त आश्रम ग्रहण कर लिया.महाराज तामरदवज का विवाह सिंध देश की राजकुमारी कुंतीदेवी क साथ हुआ. कुंती क दाहीज मे हाथी, घूड़े, हीरे, मोटी, धन , धान्या, आभूषनो क साथ 500 सखियाँ भी आई. महारानी कुंती क अनुरोध पर महाराज महाराज तामरदवज ने 5 सहेलियू सत्यावती,(सत्यभामा), विशाखा, रंभा, चंपावती, और यमुना से विवाह किया. शेष 495 सहेलियो क विवाह महाराज तामरदवज ने अपने वंश क राजकुमारो क साथ सम्पन करवाए. महाराज मयुर्ध्वज और महाराज तामरदवज पुराण क तिलक माने जाते हैं. पीतरपक्षा, अमावश्या श्राड क बाद पीट्रविसर्जन हुआ. संधा आयु और गयी, रात जो आई जाने का नाम नही ले रही थी. उशकाल प्रातः काल का दर्शन दुर्लब्भ हो गया, सपना हो गया. चारो और बस ग्राहम अंधकार का सराज्या हो गया. तारे धुंधले पद गये, दिशाओ की पहचान चली गयी. धरती अचला हो गयी. द्वापर और कलयुग क संधिकाल आस्तोदया की लीला चालू हो गयी.

महाराज तामरदवज क दरबार मे फरियादो की भीड़ लग गयी. महाराज क समक्षा प्रार्तिगाड़ अपनी जटिल समशया रख बोले मराराज “क्वार पीतरपक्षा क बाद से लेकर अबीह तक रात ही रात बनी हुई है, हम लोग अपनी कन्याओ क धर्म की रक्षा कैसे करें”. समस्या जटिल और गंभीर थी. मराराज तामरदवज ने अपने महामंत्री अवाम राजपुरोहित की सलाह पर इस जटिल समस्या क समाधान हेतु सीधहा, ऋषि, मुनि, महात्मा गानो क सदर आमंत्रित कर निवेदन किया. महाथमगानो ने समस्या का हाल निकाला. जिसके निर्देशौसार कारया को मूर्ता रूप देने मे जुट गये. अनुष्ठान पूजा वेद-मंत्रो से शुरू हुआ. भगवान सूर्यवाँ इनकी 12 कलाओ की प्राण प्रतिष्हा हुई. इन्ही क सामने विवाह मण्डपछड्दान हुआ. कालास ज्योतिर्माया हुआ. वेद मंत्रो और विवाह क लोग गीतो की मधुर महार चारो दिशाओ मे बिखरने लगी, की अचानक राजमहल क अंदर ताली बजनी की आवाज़ सुनाई दी. एक परिचारिका खुशी से उछाल क आती हुई कहने लगी “महाराज की जे हो, महाराज महारानी सत्यावती का एक सुंदर फूल सा सलूना नाव राजकुमार हुआ है”. महाराज तामृद्वाज ब्रह्ममनो, महात्माओ को दान देने लगे. वेद-मंत्रो, विवाह क लुक गीतो क साथ सोहर क गीतो का संगम हो गया. उसी समाया कुछ पूर्वा की पहचान डरष्टिगत होने लगी, प्रकाश की किराने ऊषकाल की और बढ़ने लगी. लोगो की खुशियो क ठिकाना नही रहा. ऋषि-मुनि, महात्मा गड़ अवाम आचार्या गड़ अत्यंत आत्मानंद से ऊटपरूट हो दोनो हाथो को उठा हाहैइवंशा की गौरव गाथा का बखान कर मंगल कामना करते हुए मानराज़ तामरदवज को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देते हुए कहने लगे, “ महाराज आपकी जे हो, जे हो, महाराज आप हाहैइवंशी ही नही आप तमारी भी हैं. आप अधर्म रूपी अंधकार को मिटाने वेल धर्म रूपी सूर्या हैं. नवोदित राजकुमार उदय का ध्वज बॅंकर आया है. सरस्वातिबंदन राजकुमार उडयधवज दीर्घायु हो, हाहैइवंशा क सूर्या बनें”. वेद मंत्रो, विवाह क लोक गीतो और सोहर की गीतो की मधुर मधुर बरखा हो रही थी. होल होल पूर्वाई बहने लगी,ऊषकाल का स्वागत होने लगा. लोगो मे नयी चेतना आने लगी. महाराज तामरदवज को हाहैइवंशा क विशेष आलंकार ताम्रारी से अलंकरत होकर पारिययवाची से गौरव बढ़ाया. \
चह(6) महीने की रात की लीला संपन्न हुई. चेतिया अमावश्या (भद्रकाली क प्रतीक) तमारी की जननी को बसंद की बाहर से शानगार्ने लगी. हाहैइवंशियो ने चैती अमावश्या को फूल और पुष्पो, फलो से अलंकरत कर इनकी पूजा पाठ कर सुंदर सुंदर व्यंजनो का भूग लगाए. इस नववर्ष का त्योहार राजा प्रजा ने मिलकर धूम धाम से मनाया. संबध बदला, पंचांग की पूजा क बाद पंचांग बदला हैयहिवंशी तमारी बन गये. बड़े ही आदर से तमारी शब्द का उचारण होने लगा. जिसका शाब्दिक अर्थ ताम+अरी=अंधकार का दुश्मन अर्थात तमारी याने सूर्या.” चैती अमावश्या” तमारी, उडयधवज और नाव वार वधू क लिए एक स्मर्दिया पहेचान बन गयी. जिसे हैयहिवंशी तमारी सूर्यएंडू संगम परवा क रूप मे आज भी बड़े हर्षोलास से मनाया जाता है. उसी काल से तमारी (हाहैइवंशिया) अपने प्रादुर्भाव की याद मे चेट्टी अमावश्या को अपने सबसे बड़े त्योहार अवाम नववर्ष क रूप मे मानते चले आ रहे हैं. इसी वजह से हर महीने की अमावश्या को ही पूजा की जाती है.कही कही यह भी माना जाता है की हाहैइवंशी ने रात मे शादी ब्याह की इसलिए तमारी कहलाए.
चंद्रावश की दो शाखा : 1. यदुवंश. 2. हाहैइवंश.
इसी तरह हाहैइवंश की दो शाखा एक तमारी, दूसरा कल्चुरी.
1.
हाहैइवंश की प्रथम शाखा :- द्वापर और काली क संधिकाल क बनी तमारी. इसके बाद 2. संवत 932 विक्रमी (सन 875 ए.) मे कोकाल देव क कॅलिंग विजय क बाद हाहैइवंशिया कल्चुरी कहलाए, हाहैइवंशा की यह दूसरी शाखा कल्चुरी बनी. काई हाहैइवंश नये विशेषण कल्चुरी लिखने लगे.
विशेष:-
1.
अश्विनी शुक्ल 9 संवत 306 विक्रमी से हाहाइयानाड संवत चला.
2.
महाबली महाराज कारटीवीर्या अर्जुन (सहअस्त्राबाहु) महान तांत्रिक थे. इनके बनाए कारतरावीरया तंतरा को तंतरशास्त्रा का राजा माना जाता है. क्रातिं वर्षा का क प्रथम आविष्कर्ता होने क कारण “पर्ताक्षा परजनया” कहलाए. महाराज कर्ट्वीरया अर्जुन ही कांसा पेटल धातु क आविष्कार करता हैं. जो ताम्र्ररी लोगो को अपने पूर्वजों से मिला है. यह पहादया पुराण से भी पता चलता है क्यूकी तंतरशास्त्रा और आयुर्वेद का घनिष्ता संबंध है. छातीश गढ़ मे तंतरा मंतरा इन्ही की कृपा से फूला फला है. जिसे लोग विषमरत कर चुके हैं.
यथा राजा तथा प्रजा : चातीषगढ़ (फक्शिण कौशल) क हाहैइवंशी राजा शूरवीर, गौ, ब्राह्मण, धर्मरक्षक, महान त्यागी, धर्मात्मा, तांत्रिक अवाम मंत्रिक थे. इसी तरह प्रजा भी आध्यात्मिक तांत्रिक और मंत्रिक की ग्याता थी. तमारी का पुराण अवाम इतिहास स्वयं चैती अमावस्या है. सूरयंडी संगम इनके इतिहास पांडी लिपि क प्रष्तो मे ही रह गया है. आज तक हाहैइवंशी अपने आवीरभाव को भूले नही हैं और विशेषा आलंकार से अलंकरत हैं. भले ही तमारी का आपब्रांश टेमर हो गया, भले ही अपने को तामरदवज से ताम्रकार बना डाले परंतु सच तो यही है की चेती अमावस्या ही ताम्राअरी क आवीरभाव का प्रतीक है. उडयधवज साक्षी हैं तमारी (टेमर) का संबंध धंधा व्यवश्ए से नही है. विपत्ति आने पर सत्यवादी हरिशचंदा को डोम क यहा नौकरी करनी पड़ी. डोम की सेवा चाकरी करनी पड़ी. विपत्ति आने पर महान प्रतापी राजा कर्ट्वीरया अर्जुन(सहअस्त्राबाहु) की संतान जीवा निर्वाह हेतु कार्ट्वीरया क द्वारा बताए हुए धातु विगयाँ क द्वारा बर्तन आदि पात्रा बनाने लगे. तमारी(टेमर) का समबहध कोई धातु विशेष से नही है और ना ही धातु निर्माण क बाद धातु बनाना क कारण टेमर नाम पड़ा है. तामा क काम करने वेल को टेमर कहते हैं. तामा यह ग़लत है की कालांतर की हवा ने, हालात ने तामा से टेमर जोड़ दिया यह बात अलग है. तामा का अर्थ लाल भी होता है जो ऊषा का प्रतीक है. हुमारे रेहान सहन आचार विचार, हुमारी संस्कृति, ताज, त्योहार, जन्म मारन, शिक्षा, ब्याह आदि का कारया वैदिक मत से होता है, हिंदू शस्त्रा क अनुसार 96 संस्कार माने गये हैं. इन संस्कारो से सभी बँधे हैं. तमारी (टेमर) हाहैइवंश क उपर प्रदूषित प्रहार हो रहा है, ताकि यह अपनी पहचान भूल जाए, अपनी मर्यादा को छ्चोड़ दे. इनकी पवित्रता क्को ना बचा सकें. हाहैइवंश की तमारी की कठिन परीक्षा है. ढेरया क साथ सामना करना होगा. सममे की गति बलिहारी है. हाहैइवंश क संबंध मे किसी ने कहा है :-
इनके पुरखे एक दिन थे, भ्पूपति सीरमूर.
उनकी संतति आज है, कही ना पाती तूर.
उत्कर्ष दर्पण ताम्रकार, दुर्ग.